डॉ. चेतन ठठेरा स्वतंत्र पत्रकार
जयपुर। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए स्पष्ट कहा है कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर अपने आप में कोई अपराध नहीं है लेकिन यह एक वैवाहिक वजह है जिसके कारण तलाक या वैवाहिक विवाद के मामलों में इसे आधार बनाया जा सकता है।
एक महिला द्वारा पति की प्रेमिका के खिलाफ बार याचिका की शिकायत से जुडा मामला है जिसमें महिला ने 2012 में शादी की और 2018 में उसके जुड़वा बच्चे हुए लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब 2021 में दूसरी महिला उसके पति के व्यवसाय में शामिल हो गई। याचिका में महिला ने आरोप लगाया कि दूसरी महिला उसके पति के साथ यात्रा में जाती थी।दोनों बेहद करीब आ गए और परिवार के विरोध के बावजूद भी यह सब जारी रहा।
याचिका में महिला ने कहा कि दूसरी महिला उसके पति के साथ सार्वजनिक स्थानों पर प्रेमिका के रूप मेंजाती थी बाद में तलाक के लिए अर्जी लगा दी इस पर पत्नी ने पति के खिलाफ हाई कोर्ट में या चिक लगाते हुए कैसे कर दिया। प्रेमिका और महिला के पति ने हाई कोर्ट में दावा किया की शादी से जुड़े मामले की सुनवाई फैमिली कोर्ट में ही की जानी चाहिए हाई कोर्ट में नहीं।
याचिका में पत्नी ने पति की प्रेमिका से भावनात्मक नुकसान और साथी की हानि के लिए मुआवजा मांगा है हालांकि पति और उसकी प्रेमिका को नोटिस जारी किया गया ताकि इस बात का फैसला हो सकेगी शादी टूटने की वजह महिला है या नहीं।
न्यायाधीश पुष्पेंद्र कौरव ने दौरान फैसला देते हुए कहा कि कोई भी पति या पत्नी अपने साथी के प्रेमी पर मुकदमा कर सकता है और अपनी शादी तोड़ने, आपसी प्रेम को नुकसान पहुंचाने के लिए आर्थिक सहायता की मांग भी कर सकता है।यह इसलिए कि इसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं। न्यायाधीश कौरव ने सुनवाई के दौरान जोसेफ शाइन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया।
न्यायाधीश कौरव ने कहा कि अगर किसी तीसरे व्यक्ति के कारण शादी टूटती है तो पत्नी उसे सिविल कोर्ट में उससे हर्जाना मांग सकती है। न्यायमूर्ति ने सुनवाई के दौरान कहा कि यद्यपि यह व्यभिचार अपराध नहीं है फिर भी इसके नुकसान के लिए हर्जाना लिया जा सकता है। यह मामला सिविल कानून से जुड़ा है इसलिए इसे फैमिली कोर्ट में नहीं बल्कि सिविल कोर्ट में देखा जाएगा।
यह फैसला भारत में एलिनेशन ऑफ अफेक्शन सिद्धांत को लागू करने की दिशा में पहला उदाहरण बन सकता है।




